Friday, March 19, 2010

तो अफ़सोस नहीं है

मैं अब जान गया हूँ , कि मुझे होश नहीं है
ज़िन्दगी जीने का मुझमे , अब जोश नहीं हैं
जब भी मिटानी चाही है , तस्वीर किसी की
उतना ही अधिक वह तो , ज़िगरदोज़ हुई है
मैं जानता हूँ आज कलम , बंद है उनकी
पर दिमाग़ और आँख तो , खामोश नहीं है
मेरे साथ वो चले हैं , कदम तीन ही गिन कर
फिर भी मैं गिर पड़ा , तो उनका दोष नहीं है
वो साथ हैं नहीं तो तनिक , रंज तो है " जय "
कोई अच्छा मिल गया हो , तो अफ़सोस नहीं है

Wednesday, March 17, 2010

हृदय दधीचि मर रहा है .......

अति समीप्यबोध को दूर तो हटाईये
हृदय दधीचि मर रहा है फिर परोपकार में
मन मयूर रो रहा है बादलों के शोर से
नयन मीन बन गए हैं प्रिय बिना त्यौहार में
चमक चमक दामिनी उर प्रदाह दे रही
या कि भार बढ़ गया है आज कंठ हार में
रक्त रंजिता हुयी हैं भावनाएं आज सब
कुचल कुचल के मर रही हैं मन महिष की मार से
चाहना यही है एक प्रिय बहुत समीप हो
एक बार आन मिलो अब असीम प्यार में
डूब चली शोक में पपीहरे की बूँद ' जय '
दग्ध हृदय , तप्त गात , मन है उदधि ज्वार में
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Thursday, March 4, 2010

कितना अच्छा होता

कितना अच्छा होता , यदि मैं एक ग़ज़ल बन जाऊं /
क्या बात हो कि उनके , होंठों से निकल कर आऊँ //
बन कर के एक बवंडर , डोलूं इधर उधर मैं ,
संग में पहाड़ , नदियाँ, जंगल व समंदर हैं ,
कई बार मिले हैं , मुझे कुछ और ठिकाने भी,
क्या बात हो कि उनके , आँचल से फिसल कर आऊँ /
क्या बात हो कि उनके , होंठों से निकल कर आऊँ //
ये कैसा रंग रूप है , ये कैसा मेरा जीवन ,
हैं व्यर्थ मेरी वाणी , श्वास और स्पंदन ,
हैं फूल हज़ारों खिले , मैं ऐसा बगीचा हूँ ,
क्या बात हो कि उनके , गजरे का कँवल बन जाऊँ /
क्या बात हो कि उनके , होंठों से निकल कर आऊँ //
काबा में सजदा करके , काशी में सर झुकाया ,
गुरूद्वारे में मत्था टेका , गिरजा में बैठ आया ,
विश्राम भला क्यों कर , पायेंगे कदम तबतक ,
क्या बात हो कि उनके, सपनों में टहल कर आऊँ /
क्या बात हो कि उनके , होंठों से निकल कर आऊँ //
जब वो नहीं समीप तो , मधुमास आग जैसा ,
कितना भी मेह बरसे , सावन है जेठ का सा ,
ये दृष्टि दोष है मेरा, या कुछ और बात है ' जय '
क्या बात हो कि उनकी , आँखों में मचल कर आऊँ /
क्या बात हो कि उनके , होंठों से निकल कर आऊँ //

प्रगति पथ

विकृत सी अभिलाषाओं को
अब तुझे दमन करना होगा /
उन्नति के स्वर्णिम पथ पर
तब तुझे गमन करना होगा //
अति दुर्गम यह राह नयी है
पर तुझको चलना ही है /
कितनी ही हो दुसह चढ़ाई
किन्तु तुझे चढ़ना ही है /
खुले चक्षु और अति धीरज
से शनै शनै बढना ही है /
काम क्रोध मद लोभ सभी का
अब तुझे क्षरण करना होगा //
विकृत सी अभिलाषाओं को
अब तुझे दमन करना होगा //
उन्नति के स्वर्णिम पथ पर
तब तुझे गमन करना होगा //